कर्म फल एक कहानी | Spiritual Story in Hindi
सेवा करते करते बरसों बीत गए, उसका परिवार कभी कभी यह भी सोचता था, कि, हम सब इतने प्रेमभाव से संत महात्मा और जरुरियात मंद लोगो की सेवा करते हे ,फिर भी हमारे परिवार में इस बच्चे के साथ ऐसा क्यों हुआ ? इसका क्या दोष था जो वह अपाहिज हे ?
एक दिन की बात हे, जब संत महात्मा का सत्संग चल रहा था, हजारों लाखों श्रद्धालुओं उस सत्संग में बैठे हुए थे , संत महात्मा ने अपने प्रवचन पूरा करने के बाद कहा की, इस पुरे प्रवचन के विषय में अभी भी किसी के मन में कोई शंका हो तो वे बताये
हजारों लाखों श्रद्धालुओं के बीच उस अपाहिज पुत्र के पिता ने, संत महात्मा से एक सवाल किया की, हे महात्मा हम सब निस्वार्थ भाव से जरुरियात मंद लोगो की सेवा करते हे, और हमारा पूरा परिवार अहिंसा के मार्ग पर चलता हे, कभी भी किसी के बारे में बुरा नहीं सोचते हैं, ना ही किसी का बुरा करते हैं, फिर भी ऐसा क्या गुनाह हुआ, जो हमारा बच्चा अपाहिज पैदा हुआ??
फिर गुरु ने जवाब दिया वैसे तो में यह बात नहीं बता सकता ,फिर भी आपके मन में दुविधा हे तो सुनो,
यह जो बच्चा हैं, जो दोनों टांगों से बेकार है, पिछले जन्म में एक किसान का बेटा था। रोज खेत में अपने पिता को, दोपहर में, भोजन का टिफिन खेत में देने जाया करता था। एक दिन उसकी मां ने ,उसे दोपहर में 11:00 बजे खाना लगा कर दिया और कहा कि बेटा खाना खाकर, पिताजी को टिफिन दे कर आ। इसकी मां ने खाना परोस कर थाली में रखा कि इतने में उसके किसी दोस्त ने आवाज लगाई तो यह खाना वही छोड़ कर, अपने दोस्त से बात करने बाहर चला गया। इतने में ही एक कुत्ता घर में घुस आया और उसने थाली में मुंह डाला और रोटी खाने लगा। लडका जैसे ही घर में वापिस आया और, कुत्ते को थाली में मुंह डालता हुआ देखकर ,पास ही में एक लोहे का बड़ा सा डंडा पड़ा हुआ था उसने यह भी नहीं सोचा, कि खाना तो झूठा हो चुका है, बिना सोचे समझे उस कुत्ते की दोनों टांगों पर इतनी जोर से लोहे का डंडा मारा, कि वह कुत्ता अपनी जिंदगी में जब तक जिंदा रहा, दोनों पैरों से बेकार हो कर घसीटते घसीटते जिंदगी जिया, और तड़प तड़प कर मर गया।
यह उसी कुत्ते की बददुआ का फल है, जो इस जन्म में यह दोनों टांगों से अपाहिज पैदा हुआ है। संत महात्मा ने कहा पुत्र इस संसार में इंसान को अपने अपने कर्मों का फल भुगतना ही पड़ता है इस जन्म में अगर किसी की टांग तोड़ी है तो स्वाभाविक है कि अगले जन्म में आपकी टांग टूटनी ही हे । अगर आप किसी को नुक्सान पोहचाओगे तो आपका भी नुकशान होना ही हे इस जन्म में नहीं तो अगले जन्म में इसलिए जो भी कर्म करो सोच समझ कर करो
आप अपने कर्मफल से नहीं बच सकते। आप जहाँ भी जाते हैं, जो कुछ भी करते हैं, आपके कर्म ही आपको शांतिपूर्वक देख रहे होते हैं। किसी भी दिन आपको आपके कर्म का फल पृथ्वी पर वहन करना ही होता है।”इसीलिए हर समय उचित कर्म करना अनिवार्य हे
भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कर्म को प्रधानता देते हुए यहां तक स्पष्ट किया है कि व्यक्ति की यात्रा जहां से छूटती है, अगले जन्म में वह वहीं से प्रारंभ होती है।
जो प्रकृति के नियमों का पालन करता है। वह परमात्मा के करीब है, लेकिन ध्यान रहे यदि परमात्मा भी मनुष्य के रूप में अवतरित होता है तो वह उन सारे नियमों का पालन करता है जो सामान्य मनुष्यों के लिए हैं।
इस जन्म या अगले जन्म में हर बुरे-भले कर्म का प्रतिफल निश्चित रूप से भोगना पड़ता है