सीता वास्तव में कौन थी? | Vedavati

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Vedavati


वाल्मीकि रामायण के अनुसार एक बार जब रावण अपने पुष्पक विमान (plane) से कहीं जा रहा था, तब उसे एक सुंदर स्त्री दिखाई दी, उसका नाम वेदवती था। वह भगवान विष्णु (bhagwan shri vishnu ji) को पति रूप में पाने के लिए तपस्या कर रही थी। 
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तब रावण वेदवती के समाप जा बैठा और पूछने लगा– ‘कल्याणी! तुम कौन हो और क्यों यहाँ ठहरी हुई हो?’ वह देवी परम सुन्दरी थी। उस साध्वी कन्या के मुख पर मन्द मुस्कान की छटा छायी रहती थी। उसे देखकर दुराचारी रावण का हृदय विकार से संतप्त हो गया। ऐसी स्थिति में रावण ने मन-ही-मन उस कमललोचना देवी के पास जाकर उसका मानस स्तवन किया। 


शक्ति की उपासना विफल नहीं होती, इसे सिद्ध करने के विचार से देवी वेदवती रावण पर संतुष्ट हो गयी और परलोक में उसकी स्तुति का फल देना उन्होंने स्वीकार कर लिया। साथ ही उसे यह शाप दे दिया– ‘दुरात्मन! तू मेरे लिये ही अपने बन्धु-बान्धवों के साथ काल का ग्रास बनेगा; क्योंकि तूने कामभाव से मुझे स्पर्श कर लिया है; अतः तपस्विनी ने उसी क्षण अपनी देह त्याग दी और रावण को श्राप दिया कि एक स्त्री के कारण ही तेरी मृत्यु (death) होगी। 

साध्वी वेदवती दूसरे जन्म में जनक की कन्या हुई और उस देवी का नाम सीता पड़ा जिसके कारण रावण को मृत्यु का मुख देखना पड़ा था। वेदवती बड़ी तपस्विनी थी। पूर्व जन्म की तपस्या के प्रभाव से स्वयं भगवान श्रीराम उसके पति हुए। ये राम साक्षात श्रीहरि थे  देवी वेदवती ने घोर तपस्या के द्वारा आराधना करके इन जगदीश्वर को पतिरूप में प्राप्त किया था।

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