Vat Savitri Story in hindi
प्राचीन काल में अश्वपति नाम के एक राजा राज करते थे। वह बड़े ही धर्मात्मा एवं जितेंद्रिय थे। राजा को कोई संतान नहीं थी। इसलिए उन्होंने संतान प्राप्ति की कामना से 18 वर्षों तक सावित्री देवी ने कठोर तप कीया | देवी सावित्री ने उन्हें एक तेजस्विनी कन्या की प्राप्ति का वर दिया।
वट सावित्री व्रत कथा
विवाह योग्य होने पर राजा ने उन्हें विवाह के लिए स्वयं अपने योग्य वर की खोजकरने को कहा | सावित्री ने तपोवन में अपने माता-पिता के साथ निवास कर रहे द्युमत्सेन से प्रभावित हुए और उन्हें अपना वर चुनने का निश्चय कर लिया और जब वे अपने पिता को ये बात बताने गयी तब नारद जी भी वहा मौजूद थे सावित्री ने उन दोनों के चरणों में श्रद्धा से प्रणाम किया। और बताया की में तपोवन में अपने माता-पिता के साथ निवास कर रहे द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान से विवाह करना चाहती हु
नारद जी की बात सुनकर राजा अश्वपति चिंतित हो उठे और उन्होंने अपनी पुत्री से कहा अब तुम फिर से यात्रा करो और किसी दूसरे योग्य वर का वरण करो।’’
सावित्री सती थी। उसने दृढ़ता से कहा -पिताजी! सत्यवान चाहे अल्पायु हों या दीर्घायु अब तो वही मेरे पति हैं। जब मैंने एक बार उन्हें अपना पति स्वीकार कर लिया फिर मैं दूसरे पुरुष का वरण कैसे कर सकती हूं?
सावित्री का निश्चय दृढ़ जानकर महाराज अश्वपति ने उसका विवाह सत्यवान से कर दिया। धीरे-धीरे वह समय भी आ पहुंचा जिसमें सत्यवान की मृत्यु निश्चित थी। सावित्री ने उसके चार दिन पूर्व से ही निराहार व्रत रखना शुरू कर दिया था। इसी समय सत्यवान के सिर में बहुत पीड़ा होने लगी। सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे अपने गोद में पति के सिर को रख उसे लेटा दिया। उसी समय सावित्री ने देखा अनेक यमदूतों के साथ यमराज आ पहुंचे है। सत्यवान के जीव को दक्षिण दिशा की ओर लेकर जा रहे हैं। यह देख सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे चल देती हैं।
उन्हें आता देख यमराज ने कहा कि- हे पतिव्रता नारी! पृथ्वी तक ही पत्नी अपने पति का साथ देती है। अब तुम वापस लौट जाओ। उनकी इस बात पर सावित्री ने कहा- जहां मेरे पति रहेंगे मुझे उनके साथ रहना है। यही मेरा पत्नी धर्म है और यही सनातन सत्य है
सावित्री के पतिव्रत धर्म को देखकर यमराज बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने सावित्री को तीन वर मांगने को कहा तब सावित्री ने
- पहले वर में सास-ससुर के लिए नेत्र ज्योति मांगी
- दूसरे वर में ससुर का खोया हुआ राज्य वापस मांगा और
- तीसरे वर में अपने पति सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनने का वर मांगा।