राधाकृष्ण | कृष्ण वाणी – 19

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राधाकृष्ण | कृष्ण वाणी

एक पिता के लिए उसकी संतान गर्व है, 
उसका अहंकार है और संतान के लिए 
उसके पिता उसका आदर्श, उसकी प्रेरणा। 
बिना कहे पिता संतान की हर इच्छा समझ 
जाता है और उसे पूरी करने की चेष्टा करता है।

krishnavani radhakrishna


दूसरी ओर संतान सदैव प्रयास करता है कि 

अपने माता-पिता को गर्वित करता रहे। 
किन्तु ये बंधन है, एक स्थान पे आके टूट जाता है। 
तब जब संतान स्वयं की इच्छा से अपना जीवन साथी चुनना चाहे, 
क्यों?
कारण है संवाद की कमी। जब बात आती है संतान के
विवाह की तो माता-पिता सोचते है कि इसमें संतान से
पूछना क्या?
हम उसके लिए कुछ अनुचित तो चाहेंगे नहीं और
संतान का ये मानना होता है कि उसका भविष्य
चुनना उसका अधिकार है।

दोनों आपस में दुखी रहते है, किन्तु बात कोई नहीं करता।
होना ये चाहिए कि माता-पिता को स्नेह के साथ संतान की
इच्छा समझ लेनी चाहिए और संतान को उसी विश्वास के
साथ माता-पिता को विश्वास में ले लेना चाहिए।

एक बार संवाद करके देखिये, वर्तमान और भविष्य
दोनों ठीक हो जायेंगे और मन प्रसन्न होकर बोलेगा

राधे-राधे!

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