राधाकृष्ण | कृष्ण वाणी – 13

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राधाकृष्ण | कृष्ण वाणी

भय
भय सबको होता है चाहे वो पशु हो, पक्षी हो या मनुष्य।

वास्तविकता में मनुष्य भय को अपने साथ लेके ही जन्म लेता है। 
तो इस भय से भय कैसा ? 
यदि भय बुरा भाव होता तो क्या इसे हम अपने साथ लेके जन्म लेते?
Radhakrishna-krishnavani

वास्तविकता में भय हमें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। 
अब देखिये, 
जीवन जाने का भय आपसे स्वयं की सुरक्षा करवाने का प्रयास करता है। 
अपमान का भय सदाचार की ओर बढ़ाता है। 

किसी प्रिय को खो देने का भय, 

उसके लिए कर्तव्य पालन करने को प्रेरित करता है। 
किन्तु ये भय, 
ये भय बुरा तब हो जाता है जब आप इसे अपने ऊपर 
हावी हो जाने देते है। इसके लिए कुछ प्रयास नहीं कर पाते।

इसलिए यदि इस भय को उपयोग में लाना है, 

आपको स्वयं इस भय के ऊपर हावी हो जाना होगा। 
तो तोड़ दीजिये भय की सीमाएं, अपनी आत्मा को 
छोड़ के किसी ओर के समक्ष सर मत झुकाइये और 
स्मरण रखिये जब अंधकार से डरना छोड़ दोगे 
तभी दीपक बन कर प्रकाश दे पाओगे। 
राधे-राधे!

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