भीम और हनुमान जी की मुलाकात की कहानी | आनंद रामायण में वर्णन है कि द्वापर युग में हनुमानजी भीम की परीक्षा लेते हैं। इसका बड़ा ही सुंदर प्रसंग है। द्वापरयुग में श्री कृष्ण हनुमानजी की सहायता से भीम का अहंकार नष्ट करने की कथा देवी रुक्मणि को सुना रहे थे | इस कहानी के वीडियो का लिंक भी निचे दिया गया हे
कहानी : | भीम और हनुमान |
शैली : | आध्यात्मिक कहानी |
सूत्र : | पुराण |
मूल भाषा : | हिंदी |
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हनुमानजी ने भीम के अहंकार का अंत किया
पौराणिक कथा महाभारत में जब पांडवों को 12 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञातवास मिला था, तब वे सभी वन में वास कर रहे थे. अर्जुन देवराज इंद्र से दिव्य शस्त्र पाने के लिए हिमालय में तपस्या करने चला गया. उस समय वे सभी एक और शांतिपूर्ण स्थान की तलाश में चले गये, और चलते – चलते वे नारायण आश्रम पहुँचे. उन्होंने यह निश्चय किया कि कुछ समय वे यहीं विश्राम करेंगे
उसी समय पूर्व दिशा से एक कमल का पुष्प द्रौपदी के पास उड़ कर आया. वह पुष्प बहुत ही सुगन्धित था. उसकी सुगंध से द्रौपदी उस सहस्त्रदल कमल पुष्प पर मोहित हो गई. उसने भीम से इस तरह के और सहस्त्रदल कमल लाने के लिए कहा. भीम, द्रौपदी की इच्छा को पूरा करने के लिए उस सहस्त्रदल कमल पुष्प की खोज में उस ओर चल दिये, जिस ओर से उस सहस्त्रदल कमल पुष्प की सुगंध आ रही थी. पुष्प की खोज के लिए चलते चलते भीम गंधमादन पर्वत की चोटी पर स्तिथ केले के बगीचे में पहुँच जाते है. वहा द्वार में एक वानर लेटा हुआ था जोकि भीम का रास्ता रोके हुए था.
कैसे हनुमान जी ने तोड़ा भीम का घमंड
भीम ने (हनुमानजी के रूप में ) उस वानर से कहा : “हे वानर ! रास्ते से हटो और मेरा रास्ता साफ करो”. उस वानर का रास्ते से उठने का कोई मूड नहीं था. (हनुमानजी के रूप में ) उस वानर ने भीम से कहा –“ मैं बहुत बुढ़ा और कमजोर हो चूका हूँ, यदि तुम्हें जाना है तो मुझे लाँघ कर चले जाओ”.
भीम ने कहा कि –“बूढ़े वानर, तुम नहीं जानते कि तुम किससे बात कर रहे हो. मैं कुरु दौड़ से एक क्षत्रिय हूँ. मैं माता कुंती का पुत्र हूँ और भगवान पवन मेरे पिता हैं. मैं महबली भीम हूँ, प्रसिद्ध हनुमान का भाई. तो, यदि तुम मेरा अपमान करते हो तो तुम्हें मेरा प्रकोप झेलना होगा.
तब (हनुमानजी के रूप में ) वानर ने भीम से कहा –“यदि तुम्हें इतनी जल्दी है तो तुम मेरी पूँछ को हटाकर निकल जाओ”.
भीम ने पूँछ हटाना शुरू किया किन्तु वानर को कोई असर नहीं हुआ.
वह (हनुमानजी के रूप में ) वानर सिर्फ मुस्कुरा रहा था और भीम वानर की पूँछ हटाने की कोशिश कर रहे थे. उसने बहुत बल लगाया उसकी पूँछ हटाने में किन्तु उस वानर की पूँछ टस से मस नहीं हुई.
भीम को कुछ अलग सा महसूस हुआ और उसने उस वानर से कहा –“आप कोई साधारण वानर नहीं हैं. कृपा करके मुझे बताये की आप कौन हैं?” मेरे अहंकार का नाश हो गया हे प्रभु कृपया अपना परिचय दे
तब वानर ने कहा –“भीम ! मैं हनुमान हूँ . मैं ही तुम्हारा बड़ा भाई हूँ. तुम्हारा रास्ता आगे खतरनाक है. यह रास्ता देवताओं का है और यह मनुष्यों के लिए सुरक्षित नहीं है. इसलिए मैं तुम्हारी रक्षा के लिए आया था. मैं जानता हूँ कि तुम यहाँ सुगन्धित सहस्त्रदल कमल पुष्प लेने आये हो. मैं तुम्हें वह तालाब दिखाऊंगा जहाँ वह पुष्प उगते हैं. तुम वहाँ से जितने चाहे पुष्प ले कर यहाँ से जा सकते हो”.
हनुमान जी विराट स्वरूप
भीम बहुत खुश हुये, और वे हनुमान जी के सामने झुक कर उनसे अनुरोध करने लगे कि –“मैं आपका वह विराट स्वरुप देखना चाहता हूँ जिससे आप सौ योजन चौड़ा समुद्र लाँघ कर लंका की भूमि पर पहुंचे थे”.
तब हनुमान जी ने अपने उस विराट स्वरुप को धारण कर भीम को दर्शन दिया. भीम उनके विराट स्वरुप को देख कर दंग रह गये और अपनी आँखें बंद कर ली. फिर हनुमान जी ने अपने सधारण रूप में आकर भीम को गले लगा लिया, ये देखकर भीम धन्य हो गए.
भीम और हनुमान – Hanumanji in Mahabharat
हनुमान जी ने भीम को आश्वासन दिया कि : जब तुम युद्ध के मैदान में शेर की तरह आह्वान करोगे तो मेरी आवाज तुम्हारी आवाज से जुड़ जाएगी, जिससे शत्रुओं की छाती में आतंक छा जायेगा. मैं अर्जुन के रथ के झंडे पर विराजमान रहूँगा. तुम्हारी ही विजयी होगी.
हनुमान जी के गले लगाने से भीम की ताकत और बढ़ गई. हनुमान जी ने अपने भाई भीम को उसके अहंकार से मुक्त कर दिया, एवं भीम को दुश्मनों से लड़ने के लिए अधिक से अधिक शक्ति प्रदान की. हनुमान जी ने भीम को आशीर्वाद दिया और वहाँ से चले गए.
इस प्रकार हनुमान जी की भीम से मुलाकात हुई और उन्होंने अपने भाई भीम को महाभारत के युद्ध में लड़ने के लिए ताकत दी भाई होने के नाते हनुमानजी ने वचन दिया की वो युद्ध में अर्जुन के रथ में ध्वजा पर बैठा हुआ ऐसी भीषण गर्जना करूँगा की शत्रुओ के प्राण सुख जायेंगे और तुम उन्हें आसानी से मर सकोगे |
अंतिम बात
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