हनुमानजी ने भीम के अहंकार का अंत किया
भीम और हनुमान जी की मुलाकात की कहानी | आनंद रामायण में वर्णन है कि द्वापर युग में हनुमानजी भीम की परीक्षा लेते हैं। इसका बड़ा ही सुंदर प्रसंग है। द्वापरयुग में श्री कृष्ण हनुमानजी की सहायता से भीम का अहंकार नष्ट करने की कथा देवी रुक्मणि को सुना रहे थे | इस वीडियो का लिंक निचे दिया हे गया हे
उसी समय पूर्व दिशा से एक कमल का पुष्प द्रौपदी के पास उड़ कर आया. वह पुष्प बहुत ही सुगन्धित था. उसकी सुगंध से द्रौपदी उस सहस्त्रदल कमल पुष्प पर मोहित हो गई. उसने भीम से इस तरह के और सहस्त्रदल कमल लाने के लिए कहा. भीम, द्रौपदी की इच्छा को पूरा करने के लिए उस सहस्त्रदल कमल पुष्प की खोज में उस ओर चल दिये, जिस ओर से उस सहस्त्रदल कमल पुष्प की सुगंध आ रही थी. पुष्प की खोज के लिए चलते चलते भीम गंधमादन पर्वत की चोटी पर स्तिथ केले के बगीचे में पहुँच जाते है. वहा द्वार में एक वानर लेटा हुआ था जोकि भीम का रास्ता रोके हुए था.
भीम ने (हनुमानजी के रूप में ) उस वानर से कहा : “हे वानर ! रास्ते से हटो और मेरा रास्ता साफ करो”. उस वानर का रास्ते से उठने का कोई मूड नहीं था. (हनुमानजी के रूप में ) उस वानर ने भीम से कहा –“ मैं बहुत बुढ़ा और कमजोर हो चूका हूँ, यदि तुम्हें जाना है तो मुझे लाँघ कर चले जाओ”.
भीम ने कहा कि –“बूढ़े वानर, तुम नहीं जानते कि तुम किससे बात कर रहे हो. मैं कुरु दौड़ से एक क्षत्रिय हूँ. मैं माता कुंती का पुत्र हूँ और भगवान पवन मेरे पिता हैं. मैं महबली भीम हूँ, प्रसिद्ध हनुमान का भाई. तो, यदि तुम मेरा अपमान करते हो तो तुम्हें मेरा प्रकोप झेलना होगा.
तब (हनुमानजी के रूप में ) वानर ने भीम से कहा –“यदि तुम्हें इतनी जल्दी है तो तुम मेरी पूँछ को हटाकर निकल जाओ”.
भीम ने पूँछ हटाना शुरू किया किन्तु वानर को कोई असर नहीं हुआ.
तब हनुमान जी ने अपने उस विराट स्वरुप को धारण कर भीम को दर्शन दिया. भीम उनके विराट स्वरुप को देख कर दंग रह गये और अपनी आँखें बंद कर ली. फिर हनुमान जी ने अपने सधारण रूप में आकर भीम को गले लगा लिया, ये देखकर भीम धन्य हो गए.
हनुमान जी ने भीम को आश्वासन दिया कि : जब तुम युद्ध के मैदान में शेर की तरह आह्वान करोगे तो मेरी आवाज तुम्हारी आवाज से जुड़ जाएगी, जिससे शत्रुओं की छाती में आतंक छा जायेगा. मैं अर्जुन के रथ के झंडे पर विराजमान रहूँगा. तुम्हारी ही विजयी होगी.