कर्ण (Karn) – कर्ण महाभारत मे एक बहुत ही मुख्य किरदार थे . इसमे कर्ण के बारे मे बताया गया है.कर्ण अपने पिछले जन्म में एक असुर राजा दम्भोद्भावा था. उसने कठिन तपस्या कर सूर्य को खुश किया. वे वरदान में सूर्य से “अमरत्व” का वरदान मांगते है. लेकिन सूर्य ये बोल कर मना कर देते है कि ऐसा नहीं हो सकता. जिसके बाद दम्भोद्भावा उनसे हजारों सेना रुपी कवच की मांग करते है जो उनकी रक्षा करे और ये भी बोलते है की एक कवच को मारने के लिए इन्सान को 1000 वर्ष तक तपस्या करनी होगी और उस कवच के मरते ही वो इन्सान भी मर जायेगा. धरती के सभी लोग इस असुर से परेशान थे
सूर्यदेवता बड़े चिंतित हुए। वे इतना तो समझ ही पा रहे थे कि यह असुर इस वरदान का दुरपयोग करेगा, किन्तु उसकी तपस्या के आगे वे मजबूर थे।उन्हे उसे यह वरदान देना ही पडा ।
इन कवचों से सुरक्षित होने के बाद वही हुआ जिसका सूर्यदेव को डर था । दम्बोद्भव अपने सहस्र कवचों की सहक्ति से अपने आप को अमर मान कर मनचाहे अत्याचार करने लगा । वह “सहस्र कवच” नाम से जाना जाने लगा ।
उधर सती के पिता “दक्ष प्रजापति” ने अपनी पुत्री “मूर्ति” का विवाह ब्रह्मा जी के मानस पुत्र “धर्म” से किया । मूर्ति ने सहस्र्कवच के बारे में सुना हुआ था और उन्होंने श्री हरि नारायण से प्रार्थना की कि इसे ख़त्म करने के लिए जन्म ले । श्री हरि नारायण ने उसे तथास्तु कहकर अद्धश्य हो गए ।कालांतर में मूर्ति ने दो जुडवा पुत्रों को जन्म दिया नर और नारायण । श्री हरि नारायण ने एक साथ दो शरीरों में नर और नारायण के रूप में अवतरण किया था । दोनों भाई बड़े हुए। एक बार दम्बोध्भव और नर आमने सामने हो गए तब नर ने दम्बोध्भव को युद्ध के लिए ललकारा | दम्बोद्भव ने नर को कहा में अजय हु और मेरा कवच सिर्फ वही तोड़ सकता है जिसने हज़ार वर्षों तक तप किया हो । नर ने कहा कि मैं और मेरा भाई नारायण एक ही हैं वह मेरे बदले तप कर रहे हैं तब नर और दम्बोध्भव के बीच भीषण युद्ध हुआ | जैसे जैसे युद्ध चला नारायण के तप से नर की शक्ति बढ़ रही थी | हज़ार वर्ष का समय पूर्ण होते हु नर ने दम्बोध्भव का एक कवच तोड़ दिया।
कर्ण के भीतर जो सूर्य का अंश है,वही उसे तेजस्वी वीर बनाता है । जबकि उसके भीतर दम्बोद्भव भी होने से उसके कर्मफल उसे अनेकानेक अन्याय और अपमान मिलते है, और उसे द्रौपदी का अपमान और ऐसे ही अनेक अपकर्म करने को प्रेरित करता है । यदि अर्जुन कर्ण का कवच तोड़ता, तो तुरंत ही उसकी मृत्यु हो जाती ।इसिलिये इंद्र उससे उसका कवच पहले ही मांग ले गए थे।