क्या मानव सेवा ही प्रभु सेवा है? | Hindi Moral Story

27

क्या मानव सेवा ही प्रभु सेवा है? – Hindi Moral Story

दोस्तों यह कहानी भगवन को क्या भेट चढ़ाये और किस भेट से भगवान् प्रसन्न होते हे उस बारेमे हे हर जीव में परमात्मा का वास होता है इसीलिए जीव मात्र की सेवा करने से ही प्रभु की प्राप्ति का द्वार खुलता है कहानी कुछ ऐसी हे की

Hindi Moral Story

एक नगर में एक सेठ रहता था जिसके पास एक व्यक्ति काम करता था जो भगवान का बहुत बड़ा भक्त था वह सदा भगवान के भजन कीर्तन सत्संग आदि का लाभ लेता रहता था । सेठ उस व्यक्ति पर बहुत विश्वास करता था जो भी जरुरी काम हो वह सेठ हमेशा उसी व्यक्ति से कहता था

एक दिन उस व्यक्ति ने सेठ से सोमनाथ यात्रा करने के लिए कुछ दिन की छुट्टी मांगी | सेठजी ने उसे छुट्टी देते हुए कहा भाई मैं तो हमेशा अपने व्यापार के काम में व्यस्त रहता हूं जिसके कारण कभी तीर्थ यात्रा का लाभ नहीं ले पाता।

सेठ ने उस व्यक्ति से कहा तुम जा ही रहे हो तो यह लो 10 मुद्रा मेरी ओर से श्री सोमनाथ प्रभु के चरणों में समर्पित कर देना । भक्त सेठ से 10 मुद्रा लेकर सोमनाथ यात्रा पर निकल गया !!कई दिन की पैदल यात्रा करने के बाद वह श्री सोमनाथ पहुंच ही गया !

मंदिर की ओर प्रस्थान करते समय उसने रास्ते में देखा कि कुछ बच्चे भोजन के लिए तरस रहे थे और भोलेनाथ का नाम लेकर भिक्षा मांग रहे थे । वह बच्चे काफी दुखी लग रहे थे | सभी की आंखों से अश्रु धारा बह रही थी । यह देखकर उस भक्त के मन में दया आ गयी

उस व्यक्ति ने सोचा क्यों ना सेठ के सौ मुद्रा से इन बच्चो को भोजन करा दूँ। और उसने वैसा ही किया उन सभी बच्चो को उन सौ मुद्रा में से भोजन की व्यवस्था कर दी। सभी बच्चे को भोजन कराने में उसे कुल 8 मुद्राए खर्च करने पड़े । उसके पास केवल अब दो मुद्राए बच गए थी उसने सोचा चलो अच्छा हुआ दो मुद्रा सोमनाथ के चरणों में सेठजी के नाम से चढ़ा दूंगा जब सेठजी पूछेंगे तो मैं कहूंगा वह मुद्राए चढ़ा दी । उस व्यक्ति ने सोचा की यह झूठ भी नहीं होगा और काम भी हो जाएगा ।

उस भक्त ने सोमनाथ जी के दर्शन के लिए मंदिर में प्रवेश किया श्री सोमनाथ जी के दर्शन करते हुए भोलेनाथ को अपने हृदय में विराजमान कराया । और अंत में उसने सेठजी की वह बची हुए दो मुद्राए भी सोमनाथ महादेव के चरणो में चढ़ा दी । और बोला यह दो मुद्राए सेठजी ने भेजी हैं ।

सदभाग्य से उसी रात सेठजी के स्वप्न में भगवान् शिव आए और आशीर्वाद देते हुए बोले सेठजी तुम्हारी 8 मुद्राए मुझे मिल गए हे यह कहकर भगवान् शिव अंतर्ध्यान हो गए । सेठजी अचानक स्वप्न से जाग गई और सोचने लगा मेरा नौकर तौ बड़ा ईमानदार है, पर अचानक उसे क्या जरुरत पड़ गई की उसने दो मुद्राए भगवान को कम चढ़ाए? उसने दो मुद्रा का क्या किया होगा ? अब काफी दिन बीतने के बाद भक्त वापस आया और सेठ के पास पहुंचा। सेठ ने कहा कि मेरे पैसे भगवान् शिव को चढ़ा दिए थै ? भक्त बोला हां मैंने पैसे चढ़ा दिए ।

सेठ ने कहा पर तुमने 8 मुद्राए क्यों चढ़ाए दो मुद्राए किस काम में प्रयोग की । तब भक्त ने सारी बात बताई की उसने 8 मुद्राए से भूखे बच्चो को भोजन करा दिया था । और भगवान् शिव को केवल दो मुधरै ही चढ़ाई थी । सेठ सारी बात समझ गया और भक्त के चरणों में गिर पड़ा और बोला आप धन्य हो आपकी वजह से मुझे भगवान् शिव के दर्शन हो गए !!

सत्य तो यह हे की भगवान को आपके धन की कोई आवश्यकता नहीं है । भगवान को वह 8 मुद्राए स्वीकार है जो जीव मात्र की सेवा में खर्च किए गए

दोस्तों जीव मात्र की सेवा करने से ही प्रभु की प्राप्ति का द्वार खुलता है। क्योंकि हर जीव में परमात्मा का वास होता है

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here