राधाकृष्ण | कृष्ण वाणी – 06

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राधाकृष्ण | कृष्ण वाणी

प्रतिदिन सूर्य उगने के साथ ही जाग उठती है कुछ कहानियां,

कुछ संघर्ष, कुछ इच्छाएं, कुछ यात्राएं और 
सभी कहानियां सम्पन्न नहीं होती, 
सभी संघर्ष जीते नहीं जाते, 
Radhakrishna-krishnavani

सभी इच्छाएं प्राप्त नहीं होती और कुछ यात्राएं रह जाती है अधूरी, क्यों?

अब आप में से कुछ कहेंगे प्रयास अधूरा था,

कुछ मानेंगे निश्चय दृढ़ नहीं था, कुछ क्रोध करेंगे, 
तो कुछ इस असफलता का बोझ अपने भाग्य के कांधों पर डाल देंगे।

परन्तु इन सबका कारण केवल एक तत्व की कमी,

कमी है ;ढाई अक्षर की कमी है “प्रेम”

प्रेम जो ना शास्त्रों की परिभाषा में मिलेगा, 
ना शस्त्रों के बल में, ना पाताल की गहराईयों में, 
ना आकाश के तारों में।

राधाकृष्ण | कृष्ण वाणी

तो ये प्रेम है कहाँ, कैसे पाया जाता है इसे? 

क्या है मार्ग प्रेम को पाने का?

प्रयास रहेगा आपको यही समझाने का तो आइये, 
भागी बनिये इस यात्रा के, साक्षी बनिये प्रेम की 
इस भावविभोर कर देने वाली इस महागाथा के, 
जो अलौकिक होकर भी इसी लोक में रची गयी 
और इस यात्रा के लिए ना आपको कोई शुल्क लगेगा, 
ना ही कोई परिचय पत्र, बस एक बार मन से बोलना होगा


राधे-राधे! 

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