Narayana Suktam नारायण सूक्तम को शांत मन के साथ, अपने आप को प्रभु के चरणों में समर्पित करते हुए पढ़ने से निश्चित ही धन धान्य की प्राप्ति, कीर्ति में बढ़ोतरी होती है तथा सारे कष्ट दूर हो जाते हैं |
नारायणसूक्तम् सार्थ : नारायण सूक्तम् एक पवित्र छंद है जो प्राचीन वेद में प्रशस्ति और प्रशंसा के रूप में भगवान विष्णु को समर्पित है। नारायण सूक्तम् में भगवान नारायण की महिमा, शक्ति, विशेषताएं और महत्त्व का वर्णन किया गया है। यहां हिंदी में इस सूक्त का सार्थ दिया जा रहा है:
Narayana Suktam Stotram Details:
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नारायणसूक्तम् सार्थ – Narayan Suktam with hindi meaning | नारायण सूक्तम अर्थ सहित
ॐ
सहस्र शीर्षं देवं विश्र्वाक्षं विश्र्वशम्भुवम्
विश्र्वैव नारायणं देवं अक्षरं परमं पदं ||
हिंदी में अर्थ : सहस्त्रों सिरों एवं नेत्रों वाले ( सर्वज्ञ एवं सर्वव्यापी ) अविनाशी श्री नारायण स्वयं सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड हैं । वह विश्व में आनंद (शम्भु) एवं प्रकाश ( ज्ञान ) के श्रोत एवं ( सभी जीवों ) के परमात्मा ( परम पद ) हैं।
Sahasra Sheersham Devam Vishwaksham Vishwashambhuvam
Vishwaiva Narayanam Devam Aksharam Paramam Padam
विश्र्वत: परमान्नित्यं विश्र्वम् नारायणं हरिं
विश्र्वम् एव इदं पुरुष: तद्विश्र्वम् उपजीवति ||
हिंदी में अर्थ : वह परमात्मा ( परम पुरुष ) ( स्वयं ) ही ब्रह्माण्ड हैं। अतः ( हर प्रकार से ) सृष्टि उनसे से ही उपजी है ( उत्पन्न हुई है), और उन पर ही नित्य स्थित है ( परम न्नित्यं )। वह सर्वव्यापी सब के पाप नाश करने वाले हैं।
Vishwatah Paramannityam Vishwam Narayanam Harim
Vishwam Eva Idam Purushah Tadvishwam Upajivati
पतिं विश्र्वस्य आत्मा ईश्वरम् शाश्र्वतं शिवमुच्यतम्
नारायणं महाज्ञेयं विश्र्वात्मानम् परायणम् ||
हिंदी में अर्थ : वह श्री नारायण सम्पूर्ण सृष्टि के ( रक्षक या पालनकर्ता ), सभी जीवों के परमात्मा, शाश्वत ( चिरस्थायी ), परम पवित्र, अविनाशी, जानने योग्य परम ज्ञान एवं सभी जीवों ( आत्माओं ) के परम लक्ष्य हैं ।
Patim Vishwasya Atma Ishwaram Shashwatam Shivamuchyatam
Narayanam Mahayagyam Vishwatmanam Parayanam
नारायण परो ज्योतिरात्मा नारायण: पर:
नारायण परम् ब्रह्म तत्वं नारायण: पर:
नारायण परो ध्याता ध्यानं नारायण: पर: ||
हिंदी में अर्थ : श्री नारायण परम ब्रह्म एवं ( जानने योग्य ) परम तत्व एवं ( जीवों के ) परमात्मा हैं । वह ध्याता ( योगियों द्वारा ध्यान करने योग्य अथवा ध्यान का लक्ष्य ) एवं ( स्वयं )ध्यान हैं।
Narayana Paro Jyotiratma Narayanah Parah
Narayana Param Brahma Tattvam Narayanah Parah
Narayana Paro Dhyata Dhyanam Narayanah Parah
यच्च किञ्चित् जगत् सर्वं दृश्यते श्रूयतेऽपि वा
अन्तर्बहिश्र्च तत्सर्वं व्याप्य नारायण: स्थित:||
हिंदी में अर्थ : इस जगत में जो कुछ भी देखा जाता है,सुना जाता है, जो कुछ भी ( शरीर के ) अंदर और ( शरीर के बाहर ) बाहर व्याप्त ( स्थित ) है, वह सब स्वयं नारायण में ही स्थित हैं।
Yaccha Kinchit Jagat Sarvam Drushyate Shrooyate’pi Va
Antarbahinscha Tatsarvam Vyapya Narayanah Sthitah
अनन्तं अव्ययं कविं समुद्रेन्तं विश्र्वशम्भुवम्
पद्म कोश प्रतीकाशं हृदयं च अपि अधोमुखं ||
हिंदी में अर्थ : वह ( श्री नारायण ) अनंत, अविनाशी एवं सर्वव्यापी ( अव्यय ) तथा सभी के हृदय में व्याप्त हैं। वह आनंद के श्रोत एवं जीवों के परम धाम हैं। अधोमुखी कमल ( उलटे कमल ) के पुष्प के समान वह सभी जीवों के हृदय के आकाश में स्थित हैं।
Anantam Avyayam Kavim Samudrentam Vishwasambhuvam
Padma Kosha Pratikasham Hrudayam Cha Api Adhomukham
अधो निष्ठया वितस्त्यान्ते नाभ्यां उपरि तिष्ठति
ज्वालामालाकुलं भाति विश्र्वस्यायतनम् महत्||
हिंदी में अर्थ : कंठ से एक हाथ नीचे, और नाभि के ऊपर ( अर्थात हृदय ) में उस ज्वाला ( लौ ) जो अग्नि की भांति के समान प्रज्वलित होती है का वास स्थान है (अर्थात परमात्मा जीव ज्योति रूपी आत्मा के रूप में हृदय में का निवास करता है )
Adho Nishtaya Vitastyante Nabhyam Upari Tishthati
Jvalamalakulam Bhati Vishwashyayatanam Mahat
सन्ततं शिलाभिस्तु लम्बत्या कोशसन्निभं
तस्यान्ते सुषिरं सूक्ष्मं तस्मिन् सर्वं प्रतिष्ठितम्||
हिंदी में अर्थ : अधोमुखी कमल की पंखुड़ी के समान हृदय में जहाँ से नाड़ी रंध्र सभी दिशाओं में विस्तृत होती है वह सूक्ष्म प्रकोष्ठ ( जिसे सुषुम्ना नाड़ी कहते हैं ) उसमें सम्पूर्ण तत्व स्थित होता है (अर्थात परमात्मा का रूप आत्मा स्थित होता है) ।
Santatam Shilabhistu Lambatya Koshasannibham
Tasyante Sushiram Sukshmam Tasmin Sarvam Pratishtitam
तस्य मध्ये महानग्नि: विश्र्वार्चि: विश्र्वतो मुख:
सोऽग्रविभजंतिष्ठन् आहारं अजर: कवि:||
हिंदी में अर्थ : हृदय के उस स्थान में ( अर्थात सुषुम्ना नाड़ी में ) वह महाज्योति स्थित होती है जो अजर है, सर्वज्ञ है, जिसकी जिह्वा एवं मुख सभी दिशाओं में व्याप्त हैं, जो उसके सम्मुख आहार ग्रहण करता है और जो स्वयं में उसको आत्मसात करता है।
Tasya Madhye Mahanagnih Vishwarchih Vishwato Mukhah
So’gravibhajantishtha-Annaharam Ajarah Kavih
तिर्यगूर्ध्वमधश्शायी रश्मय: तस्य संतता
संतापयति स्वं देहमापादतलमास्तकः
तस्य मध्ये वह्निशिखा अणीयोर्ध्वा व्यवस्थिता:||
हिंदी में अर्थ : उसकी ज्योति ऊपर, नीचे, दायें और बाएं, सर्वत्र व्याप्त है, जो पूरे शरीर सिर से पांव तक उष्ण करती हैं ( प्राण का संचार करती है )| उस अग्नि ( अर्थात शरीर में स्थित प्राण ) के मध्य में सूक्ष्म ( प्राण ) ज्योति की जिह्वा लपलपाती है।
Tirya-Gurdhvamadhasha Shayi Rashamayah Tasya Santata
Santapayati Svam Dehamapadatalamastakah
Tasya Madhye Vahnishikha Aniryordhva Vyavasthitah
नीलतोयदस्मध्यस्थस्द्विल्लेखेव भास्वरा
नीवारशूकवत्तन्वी पीता भास्वत्यणूपमा ||
हिंदी में अर्थ : मेघ में वज्र के समान देदीप्यमान, तिल के बीज के समान महीन, सोने के समान पीला, परमाणु के समान सूक्ष्म यह ज्योति प्रखर होती है।
Nila Toyadas Madhyasthas-Dvidyullekheva Bhasvara
Nivarashukavattanvi Pita Bhasvatyanupama
तस्या: शिखाया मध्ये परमात्मा व्यवस्थितः
स ब्रह्म स शिव: स हरि: स इन्द्र: सोऽक्षरः परमः स्वराट्||
हिंदी में अर्थ : उस ज्योति के मध्य में, वह परमात्मा निवास करता है| वह ही ब्रह्मा , शिव, पालनकर्ता ( हरि ), और इन्द्र हैं। वह अविनाशी , स्वयम्भू ( स्वयं से स्थित होने वाले ) एवं परमात्मा हैं।
Tasyah Shikhaya Madhye Paramatma Vyavasthitah
Sa Brahma Sa Shivah Sa Harih Indrah So’ksharah Paramah Svarat
ॠतं सत्यं परम् ब्रह्म पुरुषं कृष्ण पिङ्गलं
ऊर्ध्वरेतम् विरूपाक्षं विश्वरूपाय वै नमो नमः||
हिंदी में अर्थ : वह जो परम सत्य ,परम चरित्र एवं परम ब्रह्म हैं, श्याम वर्ण पर रेत के समान ज्योतिर्मय छवि वाले, परम शक्तिमान एवं सर्वदर्शी (श्री नारायण) को बार बार प्रणाम है ।
Rrutam Satyam Param Brahma Purusham Krishna Pingalam
Urdhwaretam Virupaksham Vishwaroopaya Vai Namo Namah
ॐ नारायणाय विद्महे वासुदेवाय धीमहि तन्नो विष्णु: प्रचोदयात् ||
हिंदी में अर्थ : हम श्री नारायण की शरण में जाते हैं और उस वासुदेव का ध्यान करते हैं। श्री विष्णु हमारा कल्याण करें।
Om Narayanaya Vidmahe Vasudevaya Dheemahi Tanno Vishnuh Prachodayat
નારાયણ સૂક્તમ – Narayan Suktam Gujarati Lyrics
ઓમ્ સ॒હ॒સ્ર॒શીર્॑ષં દે॒વં॒ વિ॒શ્વાક્ષં॑-વિઁ॒શ્વશં॑ભુવમ્ ।
વિશ્વં॑ ના॒રાય॑ણં દે॒વ॒મ॒ક્ષરં॑ પર॒મં પ॒દમ્ ।
વિ॒શ્વતઃ॒ પર॑માન્નિ॒ત્યં॒-વિઁ॒શ્વં ના॑રાય॒ણગ્મ્ હ॑રિમ્ ।
વિશ્વ॑મે॒વેદં પુરુ॑ષ॒-સ્તદ્વિશ્વ-મુપ॑જીવતિ ।
પતિં॒-વિઁશ્વ॑સ્યા॒ત્મેશ્વ॑ર॒ગ્મ્॒ શાશ્વ॑તગ્મ્ શિ॒વ-મ॑ચ્યુતમ્ ।
ના॒રાય॒ણં મ॑હાજ્ઞે॒યં॒-વિઁ॒શ્વાત્મા॑નં પ॒રાય॑ણમ્ ।
ના॒રાય॒ણપ॑રો જ્યો॒તિ॒રા॒ત્મા ના॑રાય॒ણઃ પ॑રઃ ।
ના॒રાય॒ણપરં॑ બ્ર॒હ્મ॒ તત્ત્વં ના॑રાય॒ણઃ પ॑રઃ ।
ના॒રાય॒ણપ॑રો ધ્યા॒તા॒ ધ્યા॒નં ના॑રાય॒ણઃ પ॑રઃ ।
યચ્ચ॑ કિં॒ચિજ્જ॑ગત્સ॒ર્વં॒ દૃ॒શ્યતે᳚ શ્રૂય॒તેઽપિ॑ વા ॥
અંત॑ર્બ॒હિશ્ચ॑ તત્સ॒ર્વં॒-વ્યાઁ॒પ્ય ના॑રાય॒ણઃ સ્થિ॑તઃ ।
અનંત॒મવ્યયં॑ ક॒વિગ્મ્ સ॑મુ॒દ્રેંઽતં॑-વિઁ॒શ્વશં॑ભુવમ્ ।
પ॒દ્મ॒કો॒શ-પ્ર॑તીકા॒શ॒ગ્મ્॒ હૃ॒દયં॑ ચાપ્ય॒ધોમુ॑ખમ્ ।
અધો॑ નિ॒ષ્ટ્યા વિ॑તસ્યાં॒તે॒ ના॒ભ્યામુ॑પરિ॒ તિષ્ઠ॑તિ ।
જ્વા॒લ॒મા॒લાકુ॑લં ભા॒તી॒ વિ॒શ્વસ્યા॑યત॒નં મ॑હત્ ।
સંત॑તગ્મ્ શિ॒લાભિ॑સ્તુ॒ લંબ॑ત્યાકોશ॒સન્નિ॑ભમ્ ।
તસ્યાંતે॑ સુષિ॒રગ્મ્ સૂ॒ક્ષ્મં તસ્મિન્᳚ સ॒ર્વં પ્રતિ॑ષ્ઠિતમ્ ।
તસ્ય॒ મધ્યે॑ મ॒હાન॑ગ્નિ-ર્વિ॒શ્વાર્ચિ॑-ર્વિ॒શ્વતો॑મુખઃ ।
સોઽગ્ર॑ભુ॒ગ્વિભ॑જંતિ॒ષ્ઠ॒-ન્નાહા॑રમજ॒રઃ ક॒વિઃ ।
તિ॒ર્ય॒ગૂ॒ર્ધ્વમ॑ધશ્શા॒યી॒ ર॒શ્મય॑સ્તસ્ય॒ સંત॑તા ।
સં॒તા॒પય॑તિ સ્વં દે॒હમાપા॑દતલ॒મસ્ત॑કઃ ।
તસ્ય॒ મધ્યે॒ વહ્નિ॑શિખા અ॒ણીયો᳚ર્ધ્વા વ્ય॒વસ્થિ॑તઃ ।
ની॒લતો॑-યદ॑મધ્ય॒સ્થા॒-દ્વિ॒ધ્યુલ્લે॑ખેવ॒ ભાસ્વ॑રા ।
ની॒વાર॒શૂક॑વત્ત॒ન્વી॒ પી॒તા ભા᳚સ્વત્ય॒ણૂપ॑મા ।
તસ્યાઃ᳚ શિખા॒યા મ॑ધ્યે પ॒રમા᳚ત્મા વ્ય॒વસ્થિ॑તઃ ।
સ બ્રહ્મ॒ સ શિવઃ॒ સ હરિઃ॒ સેંદ્રઃ॒ સોઽક્ષ॑રઃ પર॒મઃ સ્વ॒રાટ્ ॥
ઋતગ્મ્ સ॒ત્યં પ॑રં બ્ર॒હ્મ॒ પુ॒રુષં॑ કૃષ્ણ॒પિંગ॑લમ્ ।
ઊ॒ર્ધ્વરે॑તં-વિઁ॑રૂપા॒ક્ષં॒-વિઁ॒શ્વરૂ॑પાય॒ વૈ નમો॒ નમઃ॑ ॥
ઓં ના॒રા॒ય॒ણાય॑ વિ॒દ્મહે॑ વાસુદે॒વાય॑ ધીમહિ ।
તન્નો॑ વિષ્ણુઃ પ્રચો॒દયા᳚ત્ ॥
ઓં શાંતિઃ॒ શાંતિઃ॒ શાંતિઃ॑ ॥
अंतिम बात :
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