Mahakali Ant hi aarambh hai Dialogue
अंत ही आरंभ हे
अ से अंत अ से आरंभ
मोक्ष तू प्रकाश तू
मार्ग तू संसा रक्षक तू
अंत तू आरंभ तू
अत्याचार की ज्वाला में जब जब सृष्टि जली हे
तब तब पार्वती से एक महाकाली जन्मी हे
दिया उसने सृष्टि को अपनी
अपार शक्ति का प्रमाण
जिससे वे खुद थी अनजान
आनंद और आंशु की एक ही राशि हे गौरी
आंनद जब सीमा पार कर जाता हे
तो आँखों में आंशु आ ही जाते हे
नारी बाण हे नारायण और हम प्रत्यंचा
प्रत्यंचा का पीछे हटना आवश्यक हे
उसी प्रकार नारी को अपने बल का भार हो
इसके लिए पुरुष का पीछे हटना आवश्यक हे
नारी अगर शंका त्याग दे तो स्वयं शंकर बन जाती हे
अंत ही आरंभ हे
स्त्री पर जब भी कोई संकट आता हे
तो सदैव पुरुष के पास क्यों चली आती हे
अपनी रक्षा स्वयं क्यों नहीं करती ?
अपमान जब स्त्री का होता हे
तो प्रतिकार स्वयं क्यूँ नहीं लेती
अपना युद्ध स्वयं हे लड़ना होता हे पार्वती
क्यूंकि जो विजय दुसरो की सहायता से मिलें
उसे विजय नहीं दया केहते हे
दीपक सूरज का मार्गदर्शन
कैसे कर सकता हे पार्वती?
तुम शक्ति का महासागर हो
तुम्हारे भीतर छुपे तेज को
तुम्हे खुद ही ढूँढना होगा
फीर जिसे लक्ष्य पाना हो
उसे यात्रा स्वयं करनी पड़ती हे
कौन हु में ? क्या हे मेरा परिचय ?
तुम सब की रक्षक हो पार्वती
एक चेतना हो भक्तो के लिए आशा
और पापियों के लिए चेतावनी हो तुम
शक्ति हो जो काल से परे हे
महाकाल हु में और तुम महाकाली
शक्ति के बिना शिव शव हे
अबला शब्द में बल बहुत हे गौरी
तुम शिव की पत्नी शिव का आधा भाग हो
पति के रूप में महादेव का चयन किया हे गौरी तुमने
उत्तरदायित्व तो उठाना ही होंगा
कल का चयन ही आज का परिणाम बनके
सामने आता हे
चयन का अंत ही परिणाम का आरंभ हे
अविश्वास का अंत ही
आत्मविश्वाश का आरंभ हे
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