ओम का अर्थ : जानने का अर्थ है ईश्वर को जान लेना. समस्त वेद ॐ के महत्व की व्याख्या करते हैं. परमात्मा की स्तुति सृष्टि, स्थिति और प्रलय का संपादन इसी ॐ में निहीत है. सत् चित् आनंद की अनुभूति भी इसी के द्वारा संभव है. समस्त वैदिक मंत्रों का उच्चारण ॐ द्वारा ही संपन्न होता है. वेदों की ऋचाएं, श्रुतियां ॐ के उच्चारण के बिना अधूरी हैं.
ॐ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों का प्रदायक है।
| विषय : | ओम का अर्थ |
| शैली : | आध्यात्मिक कहानी |
| सूत्र : | पुराण |
| मूल भाषा : | हिंदी |
ॐ अर्थात् ओउम् तीन अक्षरों से बना है, जो सर्व विदित है। अ+उ+म
- “अ” का अर्थ है आर्विभाव या उत्पन्न होना,
- “उ” का तात्पर्य है उठना, उड़ना अर्थात् विकास,
- “म” का मतलब है मौन हो जाना अर्थात् “ब्रह्मलीन” हो जाना।
ॐ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और पूरी सृष्टि का द्योतक है।
Table of Contents
ओम का अर्थ – ॐ का महत्त्व
जो भी ॐ का उच्चारण करता रहता है उसके आसपास सकारात्मक ऊर्जा का संचार होने लगता है. ऊँ शब्द अ, उ, म इन तीनों ध्वनियों से मिलकर बना है जिन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक भी कहा जाता है.
ॐ धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों का प्रदायक है। मात्र ॐ का जप कर कई साधकों ने अपने उद्देश्य की प्राप्ति कर ली। कोशीतकी ऋषि निस्संतान थे, संतान प्राप्तिके लिए उन्होंने सूर्यका ध्यान कर ॐ का जाप किया तो उन्हे पुत्र प्राप्ति हो गई।
ओमित्येतदक्षरमिदंसर्व तस्योपव्याख्यानं भूत,
भवभ्दविष्यदिति सर्वमोंंकार एव।’
यच्चान्यत्त्रिकालातीतं तदप्योंकार एव॥ 1 (माण्डूक्योपनिषद श्लोक )
अर्थात : ‘ओम्’ ही है यह ‘अक्षर-शब्द’, ‘ओम्’ ही सशृण ‘विश्व’ है और यह ‘ओम्’ की ही व्याख्या है! भूत, वर्तमान तथा भविष्य अर्थात् जो कुछ था, जो कुछ है तथा जो कुछ होगा, वह ‘ओम्’ है। इसी प्रकार ‘काल’ (त्रिकाल) की सीमा से परे जो कुछ भी हो सकता है वह भी ‘ओम्’ ही है।
ॐ (ओम) के उच्चारण का रहस्य
साधारण मनुष्य उस ध्वनि को सुन नहीं सकता, लेकिन जो भी ओम का उच्चारण करता रहता है उसके आसपास सकारात्मक ऊर्जा का विकास होने लगता है। फिर भी उस ध्वनि को सुनने के लिए तो पूर्णत: मौन और ध्यान में होना जरूरी है। जो भी उस ध्वनि को सुनने लगता है वह परमात्मा से सीधा जुड़ने लगता है। परमात्मा से जुड़ने का साधारण तरीका है ॐ का उच्चारण करते रहना।
ॐ सारी सृष्टि का तेज और ब्रह्मांड को चलाने वाली कल्याणकारी जीवनदायिनी मोक्ष प्रदान करने वाली अमर ध्वनि है | ये शिव और नारायण सहित सृष्टि का ब्रह्म नाद है | ओंकार ध्वनि ‘ॐ’ को दुनिया के सभी मंत्रों का सार कहा गया है. यह उच्चारण के साथ ही शरीर पर सकारात्मक प्रभाव छोड़ती है.
त्रिदेव और त्रेलोक्य का प्रतीक
ॐ शब्द तीन ध्वनियों से बना हुआ है- अ, उ, म इन तीनों ध्वनियों का अर्थ उपनिषद में भी आता है। यह ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक भी है और यह भू: लोक, भूव: लोक और स्वर्ग लोग का प्रतीक है
- “अ” ब्रह्मा का वाचक है; उच्चारण द्वारा हृदय में उसका त्याग होता है।
- “उ” विष्णु का वाचक हैं; उसका त्याग कण्ठ में होता है तथा
- “म” रुद्र का वाचक है
‘‘ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्ण मेवा: शिष्यते॥’’
अर्थात :ओंकार स्वरूप परमात्मा पूर्ण हैं। पूर्ण से पूर्ण उत्पन्न होता है | और पूर्ण में से पूर्ण निकल जाने पर पूर्ण ही शेष रह जाता है। ॐ तत् , सत्- यह तीन प्रकार के सच्तिदानंदघन ब्रह्म का नाम है। जिनकी दृष्टि से आदिकाल में ब्राह्मण वेद तथा यज्ञादि रचे गए।
अंतिम बात :
दोस्तों कमेंट के माध्यम से यह बताएं कि “ओम का अर्थ – ॐ का महत्त्व” वाला यह आर्टिकल आपको कैसा लगा | हमने पूरी कोशिष की हे आपको सही जानकारी मिल सके| आप सभी से निवेदन हे की अगर आपको हमारी पोस्ट के माध्यम से सही जानकारी मिले तो अपने जीवन में आवशयक बदलाव जरूर करे फिर भी अगर कुछ क्षति दिखे तो हमारे लिए छोड़ दे और हमे कमेंट करके जरूर बताइए ताकि हम आवश्यक बदलाव कर सके |
हमे उम्मीद हे की आपको वाला यह आर्टिक्ल पसंद आया होगा | आपका एक शेयर हमें आपके लिए नए आर्टिकल लाने के लिए प्रेरित करता है | ऐसी ही कहानी के बारेमे जानने के लिए हमारे साथ जुड़े रहे धन्यवाद ! 🙏
