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Ram Raksha Stotram Lyrics – श्री राम रक्षा स्तोत्र अर्थ सहित हिंदी में

Ram Raksha Stotram

दोस्तों यदि आप सम्पूर्ण श्री राम रक्षा स्तोत्र अर्थ सहित हिंदी में अनुवाद के साथ (Ram Raksha Stotram Lyrics) पढ़ना चाहते है तो आप यहाँ पढ़ सकते हैं | श्री राम रक्षा स्तोत्र एक अत्यंत ही शक्तिशाली स्तोत्र है. श्री राम रक्षा स्तोत्र को प्रभु के चरणों में समर्पित करते हुए पढ़ने से निश्चित ही मन को शांति मिलती हे

Ram Raksha Stotram Detail :

स्तोत्रश्रीरामरक्षास्तोत्रम्
श्री राम रक्षा स्त्रोत किसने लिखा ?बुधकौशिक ऋषि
संबंधितप्रभु श्रीराम
भाषासंस्कृत और हिंदी
सूत्रपुराण

श्री राम रक्षा स्तोत्र अर्थ सहित हिंदी में । Ram Raksha Stotram Lyrics in Hindi

श्रीगणेशाय नमः

विनियोग:
अस्य श्रीरामरक्षास्त्रोतमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः ।
श्री सीतारामचंद्रो देवता ।
अनुष्टुप छंदः। सीता शक्तिः ।
श्रीमान हनुमान कीलकम ।
श्री सीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्त्रोतजपे विनियोगः । ।

हिंदी में अनुवाद :- इस राम रक्षा स्तोत्र मंत्र के रचयिता बुध कौशिक ऋषि हैं, सीता और रामचंद्र देवता हैं, अनुष्टुप छंद हैं, सीता शक्ति हैं, हनुमान जी कीलक है तथा श्री रामचंद्र जी की प्रसन्नता के लिए राम रक्षा स्तोत्र के जप में विनियोग किया जाता हैं ।।

अथ ध्यानम् ।
ध्यायेदाजानबाहुं धृतशरधनुषंबद्धपद्मासनस्थम् ।
पीतं वासो वसानंनवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् ।
वामाङ्कारुढसीतामुखकमलमिलल्लोचनंनीरदाभं ।
नानालङ्कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनंरामचंद्रम् ॥

हिंदी में अनुवाद :- जो धनुष-बाण धारण किए हुए हैं, बद्द पद्मासन की मुद्रा में विराजमान हैं और पीतांबर पहने हुए हैं । जिनके आलोकित नेत्र नए कमल दल के समान स्पर्धा करते हैं । जो बाएँ ओर स्थित सीताजी के मुख कमल से मिले हुए हैं- उन आजानु बाहु, मेघश्याम, विभिन्न अलंकारों से विभूषित तथा जटाधारी श्रीराम का ध्यान करते हैं ।।

श्रीरामरक्षा स्तोत्र

इति ध्यानम् ।
चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम् ।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥१॥

हिंदी में अनुवाद :- श्री रघुनाथजी का चरित्र सौ करोड़ विस्तार वाला हैं । उसका एक-एक अक्षर महापातकों को नष्ट करने वाला है ।।

ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामंराजीवलोचनम् ।
जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितम्॥२॥

हिंदी में अनुवाद :- नीले कमल के श्याम वर्ण वाले, कमलनेत्र वाले, जटाओं के मुकुट से सुशोभित, जानकी तथा लक्ष्मण सहित ऐसे भगवान् श्री राम का स्मरण करके…

सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरान्तकम्।
स्वलीलया जगत् त्रातुम् आविर्भूतमजंविभुम् ॥३॥

हिंदी में अनुवाद :- जो अजन्मा एवं सर्वव्यापक, हाथों में खड्ग, तुणीर, धनुष-बाण धारण किए राक्षसों के संहार तथा अपनी लीलाओं से जगत रक्षा हेतु अवतीर्ण श्रीराम का स्मरण करके…

रामरक्षां पठेत् प्राज्ञः पापघ्नींसर्वकामदाम् ।
शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः॥४॥

हिंदी में अनुवाद :- मैं सर्वकामप्रद और पापों को नष्ट करने वाले राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करता हूँ । राघव मेरे सिर की और दशरथ के पुत्र मेरे ललाट की रक्षा करें ।।

कौसल्येयो दृशौ पातुविश्वामित्रप्रियः श्रुती ।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखंसौमित्रिवत्सलः ॥५॥

हिंदी में अनुवाद :- कौशल्या नंदन मेरे नेत्रों की, विश्वामित्र के प्रिय मेरे कानों की, यज्ञरक्षक मेरे घ्राण की और सुमित्रा के वत्सल मेरे मुख की रक्षा करें ।।

जिव्हां विद्यानिधिःपातु कण्ठंभरतवन्दितः ।
स्कन्धौ दिव्यायुधःपातु भुजौभग्नेशकार्मुकः ॥६॥

हिंदी में अनुवाद :- मेरी जिह्वा की विधानिधि रक्षा करें, कंठ की भरत-वंदित, कंधों की दिव्यायुध और भुजाओं की महादेवजी का धनुष तोड़ने वाले भगवान् श्रीराम रक्षा करें ।।

करौ सीतापतिःपातु हृदयंजामदग्न्यजित् ।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिंजाम्बवदाश्रयः ॥७॥

हिंदी में अनुवाद :- मेरे हाथों की सीता पति श्रीराम रक्षा करें, हृदय की जमदग्नि ऋषि के पुत्र (परशुराम) को जीतने वाले, मध्य भाग की खर (नाम के राक्षस) के वधकर्ता और नाभि की जांबवान के आश्रयदाता रक्षा करें ।।

सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थिनीहनुमत्प्रभुः ।
ऊरू रघूत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृत् ॥८॥

हिंदी में अनुवाद :- मेरे कमर की सुग्रीव के स्वामी, हडियों की हनुमान के प्रभु और मेरे रानों की रक्षा राक्षस कुल का विनाश करने वाले रघुकुलश्रेष्ठ श्रीराम जी रक्षा करें ।।

जानुनी सेतुकृत् पातु जङ्घेदशमुखान्तकः ।
पादौ बिभीषणश्रीदः पातु रामोऽखिलंवपुः ॥९॥

हिंदी में अनुवाद :- मेरे जानुओं की सेतुकृत, जंघाओं की दशानन वधकर्ता, चरणों की विभीषण को ऐश्वर्य प्रदान करने वाले और सम्पूर्ण शरीर की रक्षा श्रीराम जी करें ।।

एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृतीपठेत् ।
सचिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयीभवेत् ॥१०॥

हिंदी में अनुवाद :- शुभ कार्य करने वाला जो भक्त भक्ति एवं श्रद्धा के साथ रामबल से संयुक्त होकर इस स्तोत्र का पाठ करता हैं, वह दीर्घायु, सुखी, पुत्रवान, विजयी और विनयशील हो जाता हैं ।।

पातालभूतलव्योमचारिणश्छद्मचारिणः ।
न द्रष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितंरामनामभिः ॥११॥

हिंदी में अनुवाद :- जो जीव पाताल, पृथ्वी और आकाश में विचरते रहते हैं अथवा छद्दम वेश में घूमते रहते हैं, वे राम नामों से सुरक्षित मनुष्य को देख भी नहीं पाते ।।

रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वास्मरन् ।
नरो न लिप्यते पापैर्भुक्तिंमुक्तिं च विन्दति ॥१२॥

हिंदी में अनुवाद :- राम, रामभद्र तथा रामचंद्र आदि नामों का स्मरण करने वाला रामभक्त पापों से लिप्त नहीं होता । इतना ही नहीं, वह अवश्य ही भोग और मोक्ष दोनों को प्राप्त करता है ।।

जगज्जेत्रैकमन्त्रेणरामनाम्नाभिरक्षितम् ।
यः कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था सर्वसिध्दयः ॥१३॥

हिंदी में अनुवाद :- जो संसार पर विजय करने वाले मंत्र राम-नाम से सुरक्षित इस स्तोत्र को कंठस्थ कर लेता हैं, उसे सम्पूर्ण सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं ।।

वज्रपञ्जरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत् ।
अव्याहताज्ञः सर्वत्र लभते जयमङ्गलम्॥१४॥

हिंदी में अनुवाद :- जो मनुष्य वज्रपंजर नामक इस राम कवच का स्मरण करता हैं, उसकी आज्ञा का कहीं भी उल्लंघन नहीं होता तथा उसे सदैव विजय और मंगल की ही प्राप्ति होती हैं ।।

आदिष्टवान् यथा स्वप्नेरामरक्षामिमां हरः ।
तथा लिखितवान् प्रातः प्रबुध्दोबुधकौशिकः ॥१५॥

हिंदी में अनुवाद :- भगवान् शंकर ने स्वप्न में इस रामरक्षा स्तोत्र को लिखने का आदेश बुध कौशिक ऋषि को दिया था, उन्होंने प्रातः काल जागने पर उसे वैसा ही लिख दिया ।।

आरामः कल्पवृक्षाणां विरामःसकलापदाम् ।
अभिरामस्त्रिलोकानां रामः श्रीमान् सनः प्रभुः ॥१६॥

हिंदी में अनुवाद :- जो कल्प वृक्षों के बगीचे के समान विश्राम देने वाले हैं, जो समस्त विपत्तियों को दूर करने वाले हैं (विराम माने दूर कर देना ! सकलापदाम = सकल आपदा = सारी विपत्तियों को) और जो तीनो लोकों में सुंदर (अभिराम + स्+ त्रिलोकानाम) हैं, वही श्रीमान राम हमारे प्रभु हैं ।।

तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
पुण्डरीकविशालाक्षौचीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥

हिंदी में अनुवाद :- जो युवा, सुन्दर, सुकुमार, महाबली और कमल (पुण्डरीक) के समान विशाल नेत्रों वाले हैं, मुनियों की तरह वस्त्र एवं काले मृग का चर्म धारण करते हैं ।।

फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौब्रह्मचारिणौ ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौरामलक्ष्मणौ ॥१८॥

हिंदी में अनुवाद :- जो फल और कंद का आहार ग्रहण करते हैं, जो संयमी, तपस्वी एवं ब्रह्रमचारी हैं, वे दशरथ के पुत्र राम और लक्ष्मण दोनों भाई हमारी रक्षा करें ।।

शरण्यौ सर्वसत्त्वानां श्रेष्ठौसर्वधनुष्मताम् ।
रक्षःकुलनिहन्तारौ त्रायेतां नौरघूत्तमौ ॥१९॥

हिंदी में अनुवाद :- ऐसे महाबली, रघुश्रेष्ठ मर्यादा पुरूषोतम समस्त प्राणियों के शरणदाता, सभी धनुर्धारियों में श्रेष्ठ और राक्षसों के कुलों का समूल नाश करने में समर्थ श्रीराम हमारा त्राण करें ।।

आत्तसज्यधनुषाविषुस्पृशावक्षयाशुगनिषङ्गसङ्गिनौ ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रतः पथिसदैव गच्छताम् ॥२०॥

हिंदी में अनुवाद :- संघान किए धनुष धारण किए, बाण का स्पर्श कर रहे, अक्षय बाणों से युक्त तुणीर लिए हुए राम और लक्ष्मण मेरी रक्षा करने के लिए मेरे आगे चलें ।।

संनद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा ।
गच्छन् मनोरथोऽस्माकं रामः पातु सलक्ष्मणः ॥२१॥

हिंदी में अनुवाद :- हमेशा तत्पर, कवचधारी, हाथ में खडग, धनुष-बाण तथा युवावस्था वाले भगवान् राम लक्ष्मण सहित आगे-आगे चलकर हमारी रक्षा करें ।।

रामो दाशरथिः शूरो लक्ष्मणानुचरो बली।
काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः कौसल्येयोरघुत्तमः ॥२२॥

हिंदी में अनुवाद :- भगवान् का कथन है की श्रीराम, दाशरथी, शूर, लक्ष्मनाचुर, बली, काकुत्स्थ , पुरुष, पूर्ण, कौसल्येय, रघुतम,

वेदान्तवेद्यो यज्ञेशःपुराणपुरुषोत्तमः ।
जानकीवल्लभः श्रीमानप्रमेयपराक्रमः॥२३॥

हिंदी में अनुवाद :- वेदान्त्वेघ, यज्ञेश,पुराण पुरूषोतम , जानकी वल्लभ, श्रीमान और अप्रमेय पराक्रम आदि नामों का

इत्येतानि जपन् नित्यं मद्भक्तःश्रध्दयान्वितः ।
अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति नसंशयः ॥२४॥

हिंदी में अनुवाद :- भगवान् का कथन है की श्रीराम, दाशरथी, शूर, लक्ष्मणानुचर, बली, काकुत्स्थ, पुरुष, पूर्ण, कौसल्येय, रघुतम, वेदान्त्वेघ, यज्ञेश, पुराण पुरूषोतम, जानकी वल्लभ, श्रीमान और अप्रमेय पराक्रम आदि नामों का नित्यप्रति श्रद्धापूर्वक जप करने वाले को निश्चित रूप से अश्वमेध यज्ञ से भी अधिक फल प्राप्त होता हैं ।।

रामं दूर्वादलश्यामं पद्माक्षंपीतवाससम् ।
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न तेसंसारिणो नरः ॥२५॥

हिंदी में अनुवाद :- दूर्वादल के समान श्याम वर्ण, कमल-नयन एवं पीतांबरधारी श्रीराम की उपरोक्त दिव्य नामों से स्तुति करने वाला संसारचक्र में नहीं पड़ता ।।

रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिंसुंदरम्
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिंविप्रप्रियं धार्मिकम् ।
राजेन्द्रं सत्यसन्धं दशरथतनयंश्यामलं शान्तमूर्तिं
वन्दे लोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवंरावणारिम् ॥२६॥

हिंदी में अनुवाद :- लक्ष्मण जी के पूर्वज, सीताजी के पति, काकुत्स्थ, कुल-नंदन, करुणा के सागर, गुण-निधान, विप्र भक्त, परम धार्मिक, राजराजेश्वर, सत्यनिष्ठ, दशरथ के पुत्र, श्याम और शांत मूर्ति, सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर, रघुकुल तिलक, राघव एवं रावण के शत्रु भगवान् श्री राम की मैं वंदना करता हूँ ।।

रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे ।
रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः॥२७॥

हिंदी में अनुवाद :- राम, रामभद्र, रामचंद्र, विधात स्वरूप, रघुनाथ, प्रभु एवं सीताजी के स्वामी की मैं वंदना करता हूँ ।।

श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम ।
श्रीराम राम भरताग्रज राम राम ।
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम ।
श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥२८॥

हिंदी में अनुवाद :- हे रघुनन्दन श्रीराम ! हे भरत के अग्रज भगवान् राम ! हे रणधीर, मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ! आप मुझे शरण दीजिए ।।

श्रीरामचंद्रचरणौ मनसा स्मरामि
श्रीरामचंद्रचरणौ वचसा गृणामि ।
श्रीरामचंद्रचरणौ शिरसा नमामि
श्रीरामचंद्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥

हिंदी में अनुवाद :- मैं एकाग्र मन से श्रीरामचंद्रजी के चरणों का स्मरण और वाणी से गुणगान करता हूँ, वाणी द्धारा और पूरी श्रद्धा के साथ भगवान् श्रीरामचन्द्रजी के चरणों को प्रणाम करता हुआ मैं उनके चरणों की शरण लेता हूँ ।।

माता रामो मत्पिता रामचन्द्रः स्वामी,
रामो मत्सखा रामचन्द्रः ।
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालुर्नान्यं,
जाने नैव जाने न जाने ॥३०॥

हिंदी में अनुवाद :- श्रीराम मेरे माता, मेरे पिता, मेरे स्वामी और मेरे सखा हैं । इस प्रकार दयालु श्रीराम मेरे सर्वस्व हैं । उनके सिवा में किसी दुसरे को नहीं जानता ।।

दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तुजनकात्मजा ।
पुरतो मारुतिर्यस्य तं वंदेरघुनंदनम् ॥३१॥

हिंदी में अनुवाद :- जिनके दाईं ओर लक्ष्मण जी, बाईं ओर जानकी जी और सामने हनुमानजी विराजमान हैं, मैं उन्ही रघुनाथ जी की वंदना करता हूँ ।।

लोकाभिरामं रणरङ्गधीरं राजीवनेत्रंरघुवंशनाथम् ।
कारुण्यरुपं करुणाकरं तंश्रीरामचंद्र शरणं प्रपद्ये ॥३२॥

हिंदी में अनुवाद :- मैं सम्पूर्ण लोकों में सुन्दर तथा रणक्रीड़ा में धीर, कमलनेत्र, रघुवंश नायक, करुणा की मूर्ति और करुणा के भण्डार श्रीरामजी की शरण में हूँ ।।

मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेंद्रियंबुध्दिमतां वरिष्ठम् ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतंशरणं प्रपद्ये ॥३३॥

हिंदी में अनुवाद :- जिनकी गति मन के समान और वेग वायु के समान (अत्यंत तेज) है, जो परम जितेन्द्रिय एवं बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं, मैं उन पवन-नंदन वानराग्रगण्य श्रीरामजी के दूत हनुमानजी की शरण लेता हूँ ।।

कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम्।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ॥३४॥

हिंदी में अनुवाद :- मैं कवितामयी डाली पर बैठकर, मधुर अक्षरों वाले ‘‘राम-राम’’ के मधुर नाम को कूजते हुए वाल्मीकि रुपी कोयल की वंदना करता हूँ ।।

आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम् ।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयोनमाम्यहम् ॥३५॥

हिंदी में अनुवाद :- मैं इस संसार के प्रिय एवं सुन्दर उन भगवान् राम को बार-बार नमन करता हूँ, जो सभी आपदाओं को दूर करने वाले तथा सुख-सम्पति प्रदान करने वाले हैं ।।

भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम् ।
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम्॥३६॥

हिंदी में अनुवाद :- ‘‘राम-राम’’ का जप करने से मनुष्य के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं । वह समस्त सुख-सम्पति तथा ऐश्वर्य प्राप्त कर लेता हैं । राम-राम की गर्जना से यमदूत सदा भयभीत रहते हैं ।।

रामो राजमणिः सदा विजयते रामं रमेशंभजे
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मैनमः ।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्यदासोऽस्महं
रामे चित्तलयः सदा भवतु मे भो राममामुध्दर ॥३७॥

हिंदी में अनुवाद :- राजाओं में श्रेष्ठ श्रीराम सदा विजय को प्राप्त करते हैं । मैं लक्ष्मीपति भगवान् श्रीराम का भजन करता हूँ । सम्पूर्ण राक्षस सेना का नाश करने वाले श्रीराम को मैं नमस्कार करता हूँ । श्रीराम के समान अन्य कोई आश्रयदाता नहीं । मैं उन शरणागत वत्सल का दास हूँ । मैं हमेशा श्रीराम मैं ही लीन रहूँ । हे श्रीराम ! आप मेरा (इस संसार सागर से) उद्धार करें ।।

रामरामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सहस्रनामतत्तुल्यं रामनाम वरानने॥३८॥

हिंदी में अनुवाद :- (शिवजी पार्वती से बोले:-) हे सुमुखी ! राम का नाम ‘‘विष्णु सहस्त्रनाम’’ के समान हैं । मैं सदा राम का स्तवन करता हूँ और राम-नाम में ही रमण करता हूँ ।।

इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम् ।
॥ श्रीसीतारामचंद्रार्पणमस्तु ॥

શ્રી રામ રક્ષા સ્તોત્રમ્ – Ram Raksha Stotra Gujarati

ઓં અસ્ય શ્રી રામરક્ષા સ્તોત્રમંત્રસ્ય
બુધકૌશિક ઋષિઃ
શ્રી સીતારામ ચંદ્રોદેવતા
અનુષ્ટુપ્ છંદઃ સીતા શક્તિઃ
શ્રીમદ્ હનુમાન્ કીલકમ્
શ્રીરામચંદ્ર પ્રીત્યર્થે રામરક્ષા સ્તોત્રજપે વિનિયોગઃ ॥

ધ્યાનમ્
ધ્યાયેદાજાનુબાહું ધૃતશર ધનુષં બદ્ધ પદ્માસનસ્થં
પીતં વાસોવસાનં નવકમલ દળસ્પર્થિ નેત્રં પ્રસન્નમ્ ।
વામાંકારૂઢ સીતામુખ કમલમિલલ્લોચનં નીરદાભં
નાનાલંકાર દીપ્તં દધતમુરુ જટામંડલં રામચંદ્રમ્ ॥

સ્તોત્રમ્
ચરિતં રઘુનાથસ્ય શતકોટિ પ્રવિસ્તરમ્ ।
એકૈકમક્ષરં પુંસાં મહાપાતક નાશનમ્ ॥ 1 ॥

ધ્યાત્વા નીલોત્પલ શ્યામં રામં રાજીવલોચનમ્ ।
જાનકી લક્ષ્મણોપેતં જટામુકુટ મંડિતમ્ ॥ 2 ॥

સાસિતૂણ ધનુર્બાણ પાણિં નક્તં ચરાંતકમ્ ।
સ્વલીલયા જગત્ત્રાતુ માવિર્ભૂતમજં વિભુમ્ ॥ 3 ॥

રામરક્ષાં પઠેત્પ્રાજ્ઞઃ પાપઘ્નીં સર્વકામદામ્ ।
શિરો મે રાઘવઃ પાતુ ફાલં (ભાલં) દશરથાત્મજઃ ॥ 4 ॥

કૌસલ્યેયો દૃશૌપાતુ વિશ્વામિત્રપ્રિયઃ શૃતી ।
ઘ્રાણં પાતુ મખત્રાતા મુખં સૌમિત્રિવત્સલઃ ॥ 5 ॥

જિહ્વાં વિદ્યાનિધિઃ પાતુ કંઠં ભરતવંદિતઃ ।
સ્કંધૌ દિવ્યાયુધઃ પાતુ ભુજૌ ભગ્નેશકાર્મુકઃ ॥ 6 ॥

કરૌ સીતાપતિઃ પાતુ હૃદયં જામદગ્ન્યજિત્ ।
મધ્યં પાતુ ખરધ્વંસી નાભિં જાંબવદાશ્રયઃ ॥ 7 ॥

સુગ્રીવેશઃ કટિં પાતુ સક્થિની હનુમત્-પ્રભુઃ ।
ઊરૂ રઘૂત્તમઃ પાતુ રક્ષઃકુલ વિનાશકૃત્ ॥ 8 ॥

જાનુની સેતુકૃત્-પાતુ જંઘે દશમુખાંતકઃ ।
પાદૌ વિભીષણશ્રીદઃ પાતુ રામોઽખિલં વપુઃ ॥ 9 ॥

એતાં રામબલોપેતાં રક્ષાં યઃ સુકૃતી પઠેત્ ।
સ ચિરાયુઃ સુખી પુત્રી વિજયી વિનયી ભવેત્ ॥ 10 ॥

પાતાળ-ભૂતલ-વ્યોમ-ચારિણ-શ્ચદ્મ-ચારિણઃ ।
ન દ્રષ્ટુમપિ શક્તાસ્તે રક્ષિતં રામનામભિઃ ॥ 11 ॥

રામેતિ રામભદ્રેતિ રામચંદ્રેતિ વા સ્મરન્ ।
નરો ન લિપ્યતે પાપૈર્ભુક્તિં મુક્તિં ચ વિંદતિ ॥ 12 ॥

જગજ્જૈત્રૈક મંત્રેણ રામનામ્નાભિ રક્ષિતમ્ ।
યઃ કંઠે ધારયેત્તસ્ય કરસ્થાઃ સર્વસિદ્ધયઃ ॥ 13 ॥

વજ્રપંજર નામેદં યો રામકવચં સ્મરેત્ ।
અવ્યાહતાજ્ઞઃ સર્વત્ર લભતે જયમંગળમ્ ॥ 14 ॥

આદિષ્ટવાન્-યથા સ્વપ્ને રામરક્ષામિમાં હરઃ ।
તથા લિખિતવાન્-પ્રાતઃ પ્રબુદ્ધૌ બુધકૌશિકઃ ॥ 15 ॥

આરામઃ કલ્પવૃક્ષાણાં વિરામઃ સકલાપદામ્ ।
અભિરામ-સ્ત્રિલોકાનાં રામઃ શ્રીમાન્ સ નઃ પ્રભુઃ ॥ 16 ॥

તરુણૌ રૂપસંપન્નૌ સુકુમારૌ મહાબલૌ ।
પુંડરીક વિશાલાક્ષૌ ચીરકૃષ્ણાજિનાંબરૌ ॥ 17 ॥

ફલમૂલાશિનૌ દાંતૌ તાપસૌ બ્રહ્મચારિણૌ ।
પુત્રૌ દશરથસ્યૈતૌ ભ્રાતરૌ રામલક્ષ્મણૌ ॥ 18 ॥

શરણ્યૌ સર્વસત્ત્વાનાં શ્રેષ્ઠૌ સર્વધનુષ્મતામ્ ।
રક્ષઃકુલ નિહંતારૌ ત્રાયેતાં નો રઘૂત્તમૌ ॥ 19 ॥

આત્ત સજ્ય ધનુષા વિષુસ્પૃશા વક્ષયાશુગ નિષંગ સંગિનૌ ।
રક્ષણાય મમ રામલક્ષણાવગ્રતઃ પથિ સદૈવ ગચ્છતામ્ ॥ 20 ॥

સન્નદ્ધઃ કવચી ખડ્ગી ચાપબાણધરો યુવા ।
ગચ્છન્ મનોરથાન્નશ્ચ (મનોરથોઽસ્માકં) રામઃ પાતુ સ લક્ષ્મણઃ ॥ 21 ॥

રામો દાશરથિ શ્શૂરો લક્ષ્મણાનુચરો બલી ।
કાકુત્સઃ પુરુષઃ પૂર્ણઃ કૌસલ્યેયો રઘૂત્તમઃ ॥ 22 ॥

વેદાંતવેદ્યો યજ્ઞેશઃ પુરાણ પુરુષોત્તમઃ ।
જાનકીવલ્લભઃ શ્રીમાનપ્રમેય પરાક્રમઃ ॥ 23 ॥

ઇત્યેતાનિ જપેન્નિત્યં મદ્ભક્તઃ શ્રદ્ધયાન્વિતઃ ।
અશ્વમેધાધિકં પુણ્યં સંપ્રાપ્નોતિ ન સંશયઃ ॥ 24 ॥

રામં દૂર્વાદળ શ્યામં પદ્માક્ષં પીતવાસસમ્ ।
સ્તુવંતિ નાભિ-ર્દિવ્યૈ-ર્નતે સંસારિણો નરાઃ ॥ 25 ॥

રામં લક્ષ્મણ પૂર્વજં રઘુવરં સીતાપતિં સુંદરમ્
કાકુત્સ્થં કરુણાર્ણવં ગુણનિધિં વિપ્રપ્રિયં ધાર્મિકમ્ ।
રાજેંદ્રં સત્યસંધં દશરથતનયં શ્યામલં શાંતમૂર્તિમ્
વંદે લોકાભિરામં રઘુકુલ તિલકં રાઘવં રાવણારિમ્ ॥ 26 ॥

રામાય રામભદ્રાય રામચંદ્રાય વેધસે ।
રઘુનાથાય નાથાય સીતાયાઃ પતયે નમઃ ॥ 27 ॥

શ્રીરામ રામ રઘુનંદન રામ રામ
શ્રીરામ રામ ભરતાગ્રજ રામ રામ ।
શ્રીરામ રામ રણકર્કશ રામ રામ
શ્રીરામ રામ શરણં ભવ રામ રામ ॥ 28 ॥

શ્રીરામ ચંદ્ર ચરણૌ મનસા સ્મરામિ
શ્રીરામ ચંદ્ર ચરણૌ વચસા ગૃહ્ણામિ ।
શ્રીરામ ચંદ્ર ચરણૌ શિરસા નમામિ
શ્રીરામ ચંદ્ર ચરણૌ શરણં પ્રપદ્યે ॥ 29 ॥

માતા રામો મત્-પિતા રામચંદ્રઃ
સ્વામી રામો મત્-સખા રામચંદ્રઃ ।
સર્વસ્વં મે રામચંદ્રો દયાળુઃ
નાન્યં જાને નૈવ જાને ન જાને ॥ 30 ॥

દક્ષિણે લક્ષ્મણો યસ્ય વામે ચ (તુ) જનકાત્મજા ।
પુરતો મારુતિર્યસ્ય તં વંદે રઘુનંદનમ્ ॥ 31 ॥

લોકાભિરામં રણરંગધીરં
રાજીવનેત્રં રઘુવંશનાથમ્ ।
કારુણ્યરૂપં કરુણાકરં તં
શ્રીરામચંદ્રં શરણ્યં પ્રપદ્યે ॥ 32 ॥

મનોજવં મારુત તુલ્ય વેગં
જિતેંદ્રિયં બુદ્ધિમતાં વરિષ્ટમ્ ।
વાતાત્મજં વાનરયૂથ મુખ્યં
શ્રીરામદૂતં શરણં પ્રપદ્યે ॥ 33 ॥

કૂજંતં રામરામેતિ મધુરં મધુરાક્ષરમ્ ।
આરુહ્યકવિતા શાખાં વંદે વાલ્મીકિ કોકિલમ્ ॥ 34 ॥

આપદામપહર્તારં દાતારં સર્વસંપદામ્ ।
લોકાભિરામં શ્રીરામં ભૂયોભૂયો નમામ્યહમ્ ॥ 35 ॥

ભર્જનં ભવબીજાનામર્જનં સુખસંપદામ્ ।
તર્જનં યમદૂતાનાં રામ રામેતિ ગર્જનમ્ ॥ 36 ॥

રામો રાજમણિઃ સદા વિજયતે રામં રમેશં ભજે
રામેણાભિહતા નિશાચરચમૂ રામાય તસ્મૈ નમઃ ।
રામાન્નાસ્તિ પરાયણં પરતરં રામસ્ય દાસોસ્મ્યહં
રામે ચિત્તલયઃ સદા ભવતુ મે ભો રામ મામુદ્ધર ॥ 37 ॥

શ્રીરામ રામ રામેતિ રમે રામે મનોરમે ।
સહસ્રનામ તત્તુલ્યં રામ નામ વરાનને ॥ 38 ॥

ઇતિ શ્રીબુધકૌશિકમુનિ વિરચિતં શ્રીરામ રક્ષાસ્તોત્રં સંપૂર્ણમ્ ।

શ્રીરામ જયરામ જયજયરામ ।

FAQs For Ram Raksha Stotram

  1. श्रीरामरक्षा स्तोत्र किसने लिखा है ?

    माना जाता है कि श्री राम रक्षा स्तोत्र की रचना बुध कौशिक ऋषि ने की थी

  2. श्रीराम रक्षा स्तोत्र को पढ़ने के क्या लाभ हैं ?

    श्रीरामरक्षा स्तोत्र के पाठ करने से जीवन में आने वाली विपत्तियाँ और भय दूर हो जाता हे

निष्कर्ष 

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