विजय को निकल पड़ा घोड़ा
राजा राम चन्द्र भगवान की जय,
राजा राम चन्द्र भगवान की जय,
विजय को निकल पड़ा घोड़ा,
अश्वमेध का अश्व,
राम ने पूजन कर छोड़ा,
कालिका सिर पर सोने की,
रघुकुल की है आन,
पराजित कहीना ना होने की,
रघुकुल की आन आन,
पराजित कहीना ना होने की,
विजय को निकल पड़ा घोड़ा,
अश्वमेध का अश्व,
राम ने पूजन कर छोड़ा,
अंग देश होते हुए बंग देश पहुँचा,
बंग देश होके बो कलंग देश पहुंचा,
अंग देश होते हुए बंग देश पहुँचा,
बंग देश होके बो कलंग देश पहुँचा,
पाँव घोड़े के जहाँ पड़े,
मान गए लोहा बड़े बड़े,
अश्व ये जहाँ जहाँ जाए,
सूर्य वंसी ध्वज लहराए,
नगरी वन पर्वत नदी,
करता जाए पार,
जित जाए उत राम की,
होती जय जय कार,
भैंट लाते है नाना,
राम चन्द्र अधिपत,
सबने हो नत मना,
विजय को निकल पड़ा घोड़ा,
अश्वमेध का अश्व,
राम जी संग में,
सांझ समय लीन रहे,
सभी सत्य संग में,
अश्व जब लोटके आएगा,
यज्ञ पूरान हो जाएगा,
विजय सर्वत्र प्राप्त करके,
कीर्ति यस झोली में भरके,
पूर्व पश्चिम उत्तर दक्षिण,
फिर कर देश विदेश,
अपने कौशल राज्य में,
कर गया अश्व प्रवेश,
हर्ष का सागर लहराया,
अश्वमेध की पूर्ण आहूति,
का समय निकट आया,
की पूर्ण आहूति,
का समय निकट आया,
विजय को निकल पड़ा घोड़ा,
अश्वमेध का अश्व,
राम ने पूजन कर छोड़ा।।
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