ज्ञान और अज्ञान | Knowledge and Ignorance
निरपेक्ष सत्य की स्वानुभूति ही ज्ञान है। यह प्रिय अप्रिय सुख-दू:ख इत्यादि भावों से निरपेक्ष होता है। ज्ञान विभाजन विषयों के आधार पर होता है। और विषय पाँच होते हैं - रूप, रस, गंध, शब्द और स्पर्श।
ज्ञान की मूल परिभाषा
" ज्ञान और अज्ञान की परिभाषा को स्पष्ट रूप से समझने के लिए, ज्ञान और अज्ञान की विशिष्टताओ का स्मरण करना आवश्यक है!जिसके कारण स्वार्थ, विनाश, क्रूरता, अशान्ति, और भय में वृद्धि हो, वह अज्ञान है !
किन्तु जो व्यक्ति को उदार, निर्भीक, सहनशील, और विनम्र बनाये वही ज्ञान है !
अज्ञान की शक्तियां दुरूपयोग करने हैतु प्रेरित करती है, किन्तु जो अपनी शक्ति और अपने सामर्थ्य के प्रति अपने उत्तरदायित्वो को समझाए, जो न केवल अपने अपितु अपने से पहले संसार के उद्धार हैतु प्रोत्साहित करे, वही ज्ञान है !
ज्ञान का मूल उद्देश्य ही परोपकार है, सृजन है !
दूसरों की भावनाओं को समझना, उनका आदर करना, यही ज्ञान है, क्यूंकि ज्ञान हमे न केवल अपने अपितु दूसरों के दुःख और सुख के प्रति भी संवेदनशील बनता है !
किन्तु जो दूसरों की भावनाओं का अनादर करे, उसे ज्ञान की श्रेणी में कैसे रखा जा सकता है...??
अज्ञान के कारण व्यक्ति सांसारिकता में बंधता जाता है, मौह माया में उलझता जाता है !
अज्ञान परम सत्य से दूर ले जाने का माध्यम है ! "
"हर हर महादेव " ॐ नमः शिवाय
ज्ञान का ध्येय सत्य है और सत्य ही आत्मा का लक्ष्य है। ज्ञान मनुष्य को सत्य के दर्शन कराता है। “बहूना जन्म नामन्ते ज्ञानवान् माम प्रपद्यते।” (गीता) अर्थात् बहुत जन्मों के अन्त में ज्ञानी ही मुझे पाता है।
स्वर्ग और नर्क मनुष्य के ज्ञान और अज्ञान का ही परिणाम है। ज्ञानी मनुष्य के लिए यह संसार स्वर्ग है। वह जहाँ भी रहता है स्वर्गीय वातावरण का सृजन कर लेता है तो अज्ञानी को पद-पद पर अपने दुष्कृत्य और कुविचारों के कारण नारकीय पीड़ाओं का सामना करना पड़ता है
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